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मुझसे इक-इक क़दम पर बिछड़ता हुआ कौन था / मनचंदा बानी

मुझसे इक-इक क़दम पर बिछड़ता हुआ कौन था ।
साथ मेरे मुझे क्या ख़बर दूसरा कौन था ।

पहले किसकी नज़र में ख़जाने थे उस पार के
मिस्ल मेरे हदों से उधर देखता कौन था ।

कौन था मेरे पर तौलने पर नज़र जिसकी थी
जिसने सर पर मेरे आसमाँ रख दिया कौन था ।

किसकी भीगी सदा झाँकती थी मेरि ख़ाक से
मैं था अपना खंडर, उसमें मेरे सिवा कौन था ।

कौन था क़ायल-ए-क़हर<ref>ईश्वर की तबाही की शक्ति को स्वीकारना</ref> होना था जिसको अभी
टूटकर जिस पे बरसी भयानक घटा कौन था ।

शब्दार्थ
<references/>