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मुझे एक जीवन अलग से मिलना चाहिए / रूपम मिश्र

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कायदे से मुझे एक जीवन अलग से मिलना चाहिए था
तुम्हें प्रेम करने के लिए
जिसमें मैं तुम्हें कास के फूलों के खिलने के ठीक-ठीक दिन बताती ।
 
तरकुल के लम्बे साँवले पेड़
कब पीले रंग के फलों से लद जाते हैं,
चुभने वाले सरपत के पौधे भी कब
अपने फूलों से धरती का मुख उजला कर देते हैं,
प्रवासियों के लौटने के दिन कब आते हैं,
अधघूँघट में ग्रामबालाएँ कब लजाती फिरती हैं,
धान की बालियों में कब दूध आता है,
महुवा और टेसू कब जंगल को महका-बहका देते हैं,
कब कोयल खूब बोलती है,
कब खंजन पक्षी देवभूमि से लौट आते हैं,
कब मेलों के दिन आते हैं,
कब बच्चे रंगकर्मी बन जाते हैं,
कब आजी जोड़ने लगती दिन कि अमावस कब है
और दियालेसान की कितनी तैयारी बाक़ी है
कब गुड़ के गट्टे और सतरंगी अनरसा जाने कितनी बिसरी मिठाइयाँ याद आती हैं ?

तुम जानते हो फूलों का एक त्योहार होता है फुलेली-डोली
अक्टूबर के आखिरी दिनों में आता था
फूलों को प्यार न करने वालों ने इसे भुला दिया है ।

इस भूले त्योहार के दिन खोजकर उस उत्सव को फिर से मनाना था हमें
एक जीवन जिसमें मैं तुम्हें सारे बादल झरने नदियों और पहाड़ों के
एक-दूसरे से प्रेम करने के क़िस्से सुनाती
मैं तुम्हारे पवित्र माथे को चूमकर
दिसावर जाने वाली सारी बहकी हवाओं के प्रेमी झकोरों का नाम बताती
और तुम्हारे सारे दुखों को मुठ्ठी में भरकर हवा में छूमन्तर कर देती
 
ये भी कि मनुष्यों से ही धरती का जीवन बचाने के लिए
मनुष्यों ने कितनी लड़ाइयाँ लड़ी
ये भी कि जब जंगल बचाने के लिए कुछ पेड़ों की बेटियाँ
पेड़ से चिपक कर खड़ी हो गई थीं
तब हम हम जैसी स्त्रियाँ बाज़ार व बिलास में डूबी थीं

एक ऐसा जीवन
जिसमें हम उम्र भर
मनुष्य बनना और प्रेम करना सीखते ।