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मुझे कोई उम्मीद कभी भी नहीं थी बादल से / शहरयार
Kavita Kosh से
मुझे कोई उम्मीद कभी भी नहीं थी बादल से
मैं प्यासा हूँ मुझे पानी दे इस छागल से
कोई तेरे सिवा नहीं जानता है यां क़द्र उसकी
मैं उम्र बदलना चाहता हूँ जिस इक पल से
मेरे आज की सरगर्मी का है ये इक मंशा
रहे कोई न रिश्ता बाक़ी अब मेरा कल से
मैं उतना ही इसमें और भी फँसता जाता हूँ
मैं जितना निकलना चाहता हूँ शब-दलदल से
तेरे हिज्र की लम्बी सब ये कहती हैं
कोई इश्क़ करेगा आइंदा किसी पागल से।