मुझे दिया गया शरीर, मैं क्या करूँ इसका ?
जितना बेजोड़ यह मेरा है और भला किसका ?
इस शान्त ख़ुशी, इन सांसों और जीवन के लिए
किसका शुक्रिया अदा करूँ मैं, बताओ प्रिय ?
मैं ख़ुद ही माली हूँ और मैं ही तो हूँ बग़ीचा,
दुनिया के इस अन्धेरे में, सिर्फ़ मैं ही नहीं हूँ रीता ।
अमरत्व के इस काँच पर, ऐ फ़क़ीर !
लेटी हुई है आत्मा मेरी और शरीर ।
इस काँच पर ख़ुदे हुए हैं कुछ बेलबूटे ऐसे,
पहचानना कठिन है जिन्हें पिछले कुछ समय से ।
समय की गन्दी धारा यह बह जाने दो
ख़ुदे हुए इन प्रिय बेलबूटों को रह जाने दो ।
(रचनाकाल : 1909)
मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
Осип Мандельштам
Дано мне тело — что мне делать с ним…
Дано мне тело — что мне делать с ним,
Таким единым и таким моим?
За радость тихую дышать и жить
Кого, скажите, мне благодарить?
Я и садовник, я же и цветок,
В темнице мира я не одинок.
На стекла вечности уже легло
Мое дыхание, мое тепло.
Запечатлеется на нем узор,
Неузнаваемый с недавних пор.
Пускай мгновения стекает муть
Узора милого не зачеркнуть.
1909 г.