भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुझे दे रहें हैं तसल्लियाँ वो हर एक ताज़ा / जिगर मुरादाबादी
Kavita Kosh से
मुझे दे रहे हैं तसल्लियाँ वो हर एक ताज़ा पयाम से
कभी आके मंज़र-ए-आम पर कभी हट के मंज़र-ए-आम से
न गरज़ किसी से न वास्ता, मुझे काम अपने ही काम से
तेरे ज़िक्र से, तेरी फ़िक्र से, तेरी याद से, तेरे नाम से
मेरे साक़िया, मेरे साक़िया, तुझे मरहबा, तुझे मरहबा
तू पिलाये जा, तू पिलाये जा, इसी चश्म-ए-जाम ब जाम से
तेरी सुबह-ओ-ऐश है क्या बला, तुझे अए फ़लक जो हो हौसला
कभी करले आके मुक़ाबिला, ग़म-ए-हिज्र-ए-यार की शाम से