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मुझे न पूछो आज आदमी क्यों रो रहा है / सांवर दइया
Kavita Kosh से
मुझे न पूछो आज आदमी क्यों रो रहा है।
उसे ढूंढ़ो, जिसकी वजह से यह हो रहा है।
चौराहे पे जले न जाने ये चिराग़ कैसे,
अब सड़क पे अंधेरा और गहरा हो रहा है।
आवाज क्या, चीखें तक नहीं पहुंच रहीं वहां,
इस निज़ाम का हर आदमी बहरा हो रहा है।
ज़माने को फुरसत नहीं मिल रही आंसुओं से,
उनकी शोहरत की ख़ातिर जलसा हो रहा है।
तुम लेट गए घर की खिड़कियों पे तान पर्दे,
क्या वज़ह फिर मेरे दिल में दर्द हो रहा है।