भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुझे बच्चों की किलकारी सुहाती है / सुदेश कुमार मेहर
Kavita Kosh से
मुझे बच्चों की किलकारी सुहाती है
बहुत महकी ये फुलवारी सुहाती है
गुलाबी रंग आँखों में समाता है,
तेरे होठों की गुलकारी सुहाती है
नदी, परबत, घटायें, इश्क औ कुदरत,
मेरे मालिक की फनकारी सुहाती है
भला कह लो उसे या फिर बुरा कह दो,
वो जैसी है मुझे सारी सुहाती है
बुरा मुझको कहे कोई, नहीं सुनता,
मुझे उसकी तरफदारी सुहाती है
मुझे आगाह हर मुश्किल से करता है,
खुदा तेरी खबरदारी सुहाती है
मैं उनकी माँग पूरी कर नहीं पाता,
मगर बच्चों को खुद्दारी सुहाती है
सुकून ओ चैन से सोता हूँ थककर मैं,
मुझे मेरी ये ज़रदारी सुहाती है