मुझे भी आपने समझा नहीं है
मेरे अन्दर कभी झांका नहीं है।
बुराई क्यों किसी की मैं करूँगा
बुराई में ये दिल रमता नहीं है।
न मज़हब-जाति से होते पराये
जो अपना है वह भी अपना नहीं है।
सभी जीवों में उनका वास केवल
खुदा-ईश्वर कभी लड़ता नहीं है।
सदा जो काम को सज़दा करेगा
ज़माने में कभी मरता नहीं है।
नहीं के सौ बहाने हो ही जाते
मगर है हाँ तो हाँ रुकता नहीं है।