भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुझे रूतबा-ए-ग़म बताना पड़ेगा / 'फना' निज़ामी कानपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे रूतबा-ए-ग़म बताना पड़ेगा
अगर मेरे पीछे ज़माना पड़ेगा

बहुत ग़म-ज़दा दिल है कलियों के लेकिन
उसूलन उन्हें मुस्कुराना पड़ेगा

सुकूँ ढूँडने आए थे मै-कदे में
यहाँ से कहीं और जाना पड़ेगा

ख़बर क्या थी जश्न-ए-बहाराँ की ख़ातिर
हमें आशियाँ जलाना पड़ेगा

बहार अब नए गुल खिलाने लगी है
ख़िज़ाँ को चमन में बुलाना पड़ेगा

सुकूत-ए-मुसलसल मुनासिब नहीं है
असीरो तुम्हें ग़ुल मचाना पड़ेगा

‘फना’ तुम हो शाएर तो अफ़साना-ए-ग़म
गज़ल की ज़बानी सुनाना पड़ेगा