मुझे वह इस तरह से तोलता है 
मिरी क़ीमत घटा कर बोलता है 
वो जब भी बोलता है झूठ मुझसे
तो पूरा दम लगाकर बोलता है 
मैं अपनी ही नज़र से बच रहा हूँ 
न जाने कौन ऐसे खोलता है 
जुबां काटी, ताअरुर्फ़ यूँ कराया 
यही है जो बड़ा मुंह बोलता है 
मुझे तो ज़हर भी अमृत लगे हैं 
वो कानों में अज़ब रस घोलता है