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मुझ को खंज़र थमा दिया जाए / जतिन्दर परवाज़
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मुझ को खंजर थमा दिया जाए
फिर मिरा इम्तिहाँ लिया जाए
ख़त को नज़रों से चूम लूँ पहले
फिर हवा में उड़ा दिया जाए
तोड़ना हो अगर सितारों को
आसमाँ को झुका लिया जाए
जिस पे नफरत के फूल उगते हों
उस शजर को गिरा दिया जाए
एक छप्पर अभी सलामत है
बारीशों को बता दिया जाए
सोचता हूँ के अब चरागों को
कोई सूरज दिखा दिया जाए