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मुझ को लेना है तिरे रंग-ए-हिना का बोसा / रियाज़ ख़ैराबादी
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मुझ को लेना है तिरे रंग-ए-हिना का बोसा
दस्त-ए-रंगी का मिले या कफ़-ए-पा का बोसा
चूमता हाथ मैं साक़ी के अदब माने था
ले लिया जाम-ए-मय होश-रूबा का बोसा
बिजली हर लहर से पैदा हो तिरे कूचे में
ले मिरा हर नफ़स-ए-गर्म हवा का बोसा
मैं वो साग़र नहीं आए कभी लब तक जो ‘रियाज़’
किस को मिलता है तिरे रंग-ए-हिना का बोसा