भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुझ से वो चाल चल गया कैसे / मंजूर हाशमी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझ से वो चाल चल गया कैसे
पास आकर बदल गया कैसे

था तिरा लम्स<ref>स्पर्श</ref> मो’जज़ा<ref>चमत्कार</ref> वरना
सूखता पेड़ फल गया कैसे

एक लम्हे को आँख झपकी थी
सारा मंज़र बदल गया कैसे

जिसके आने का इन्तज़ार रहा
बस वही लम्हा टल गया कैसे

वक़्त जादूगरी दिखाता है
वरना ये दिल बहल गया कैसे

कैफ़-ओ-मस्ती<ref>आनन्द और उन्माद</ref> में झूमता मौसम
जिस्म में तेरे ढल गया कैसे

शब्दार्थ
<references/>