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मुद्दतों ख़ुद की कुछ ख़बर न लगे / आलोक श्रीवास्तव-१
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मुद्दतों ख़ुद की कुछ ख़बर न लगे,
कोई अच्छा भी इस क़दर न लगे।
मैं जिसे दिल से प्यार करता हूँ,
चाहता हूँ उसे ख़बर न लगे।
वो मेरा दोस्त भी है दुश्मन भी,
बद्दुआ दूँ उसे, मगर न लगे।
रास्ते में बहुत अंधेरा है,
डर है मुझको के तुझको डर न लगे।
बस तुझे उस नज़र से देखा है,
जिस नज़र से तुझे नज़र न लगे।