भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुद्दतों ख़ुद की कुछ ख़बर न लगे / आलोक श्रीवास्तव-१

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुद्दतों ख़ुद की कुछ ख़बर न लगे,
कोई अच्छा भी इस क़दर न लगे।

मैं जिसे दिल से प्यार करता हूँ,
चाहता हूँ उसे ख़बर न लगे।

वो मेरा दोस्त भी है दुश्मन भी,
बद्दुआ दूँ उसे, मगर न लगे।

रास्ते में बहुत अंधेरा है,
डर है मुझको के तुझको डर न लगे।

बस तुझे उस नज़र से देखा है,
जिस नज़र से तुझे नज़र न लगे।