भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुनटुन की साईकल / राम करन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुनटुन लेकर साईकल,
'टुन-टुन' करते आये कल।
ताबड़-तोड़ लगाते बल,
पैडल मारें चल-चल-चल।

मुनटुन करते हैं कसरत,
और रोज ही खाते फल।
गाते रहते हैं हर पल,
चल्लम-चल्लम चल-चल-चल।

दाएं से पर चलना मत,
बाएं चल, ओ बाएं चल।
ना ही धुआँ, ना पेट्रोल,
चलती करके कल-कल-कल।

बिना खर्च के फर-फर-फर,
ऊबड़ हो या हो समतल।
मुनटुन लेकर साईकल,
'टुन-टुन' करते आये कल।