खुल जाते है दरवाज़े ।
एक सीढ़ी साँप की तरह चल पड़ी है 
एक पत्थर कारखाने में बदल गया है 
एक तिनका, चिड़िया बन आकाश में उड़ रहा है ।
एक ओर दौड़ पड़ी हैं दूब की कतारें 
रोटी से भर रहे है - ताल-तलैया 
गाँव का कटा हाथ काम पर लग गया है 
चल पड़ा है - कंकाल ।
चौड़े हो रहे हैं नौज़वानों के कन्धे
चाल में तलवार की चमकार 
आखिरी ज़ंजीर कोई टूट गई है |
मुँह बा रही है दुनिया -
स्कूल जा रही है - मुनिया ।