मुन्ना कक्का सासुर चलला / कालीकान्त झा ‘बूच’
कच्छी कऽसि-कऽसि तहिपर धोती रऽचि रऽचि कऽ
मुन्ना कक्का सासुर चलला, पूरा सजि-धजि कऽ
सबसँ पहिने पोखरि धॅसला,
चढिते काठ उनटि कऽ खसला
मललनि माथ माँटि करिऔटी,
ऊपर अयला झारि लंगोटी
अधमोनी झामा सँ गत्तर-गत्तर मलि-मलि कऽ,
मुन्ना कक्का सासुर चलला, पूरा सजि-धजि कऽ
एते किएक बेकल हौ मुन्ना
तोरे एकटा सासुर की
जतरा करऽ दिन देखबा कऽ,
बाबा जी कहि देलनि ई
अधपहरा जखने हेतै, दू मिनट हेतै दस बजि कऽ,
मुन्ना कक्का सासुर चलला, पूरा सजि-धजि कऽ
ताबरतोर चलल जा रहला,
जेठक तेज विहाडि जकाँ
रैन कतहु ने, पडे बाट मे,
साँझ लगए मुँनहारि जकाँ
हुलसल डेग बढाबथि आगाॅ हुमचि - हुमचि कऽ,
मुन्ना कक्का सासुर चलला, पूरा सजि-धजि कऽ
झाॅपल मुँहें सासु कहलथिन,
झा हमरा बड मानै छथि ।
जखन - तखन हमरो खातिर,
गरमे रसगुल्ला आनै छथि ।
अझुका सबटा गुलगुल्ला थिक झा बजला हँसि-हँसि कऽ,
मुन्ना कक्का सासुर चलला, पूरा सजि-धजि कऽ