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मुन्नु रानी / शमशाद इलाही अंसारी

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चाहों में सब चाहों से पार हो तुम मुन्नु रानी !
अपनी माँ के जीवन का सार हो तुम मुन्नु रानी !

तेरी आहटें, तेरी बातें, तेरा हँसना मुस्कुराना
तेरे खाने- पिलाने पर रूठना मनाना।

वो कमरे के किसी कोने में तेरी निगाह का अटक जाना
वो बिल-वजह किसी बात पर यूँ ही तेरा खिलखिलाना।

मेरी दुनिया भी तुम, मेरी जन्नत भी तुम मुन्नु रानी
अपनी माँ के जीवन का सार हो तुम मुन्नु रानी !

वो कभी बिस्तर से उठना, कभी लुढ़क जाना
बैठ कर संभलना और फ़िर लेट जाना।

वो चार क़दम चलकर तेरा फ़िर से बैठ जाना
कोहनी के बल सरकना कभी घुटनों से चल कर आना।

वो किसी हरकत पर लपकना उसे देख कर कहकहाना
वो दादा की गोद में ही तेरे शू-शू का आना।

तेरा चेहरा सामने आते ही तमाम दर्दों को भूल जाना
सभी ग़मों की बस दवा हो तुम मुन्नु रानी !

अपनी माँ के जीवन का सार हो तुम मुन्नु रानी !

वो दादी के सफ़ेद बालों को तेरा बारहां नोचना
मौसी की बालियों को यकायक तेरा खींचना।

मेरे गले की चेन में तेरा यूँ ही लटक जाना
पापा के पेन को तेरा मुँह में चबाना।

चाचा के बटुए से तुझे सिक्के गिराना
कभी मामा की अंगूठी को थूक से नहलाना।

तेरी हर अदा पर हम सब का मचल जाना
जीवन की ये अनमोल घडि़याँ हो तुम मुन्नु रानी!

अपनी माँ के जीवन का सार हो तुम मुन्नु रानी !

कभी दूध पीते हुये तुझको फ़ंदा लग जाना
तेरे धम्म से गिरते ही हम सब की साँसो का रुक जाना।

तुझे आता कभी बुखा़र तो घर में मातम सा छा जाना
तेरा रोना, कभी बीमारी, तो कभी तुझे चोट का लगना।

ऐसी किसी ख़बर से ही हमारे खू़न का पानी बन जाना
तमाम रिश्तों में अव्वल हो तुम मुन्नु रानी !

घर के जीवन का आधार हो तुम मुन्नु रानी !
अपनी माँ के जीवन का सार हो तुम मुन्नु रानी !
चाहों में चाहों के पार हो तुम मुन्नु रानी !


रचनाकाल : 19.08.2002