भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुफ़लिस तो खड़े रह गए ईमान की सफ़ में / ओम प्रकाश नदीम
Kavita Kosh से
मुफ़लिस तो खड़े रह गए ईमान की सफ़ में ।
ज़रदार सभी आ गए भगवान की सफ़ में ।
बाज़ार के सिक्के की करामात तो देखो,
औसाफ़ भी अब लग गए सामान की सफ़ में ।
चिन्ता न करो अब भी बहुत लोग हैं हम-से,
चकबस्त-ओ-दयाशंकर-ओ-रसखान की सफ़ में ।
तूफ़ान के आते ही बदल जाएगा मंज़र,
मौजें भी नज़र आएँगी तूफ़ान की सफ़ में ।
जिस रोज़ से घर छोड़ के घर अपना बसाया,
उस रोज़ से हम आ गए मेहमान की सफ़ में ।