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मुबारक हो / अजित कुमार

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कुछ समुद्रों में होता है एक भारवाही जन्तु
ज़ेनोफ़ोरा !
मुर्दा खोलों, कौड़ियों, मूंगों
और पत्थर के टुकड़ों का घूरा
अपने ऊपर लाद
तरल चूने के गारे से जोड़कर सभी को
वह रहता है भीतर सुरक्षित ।

यहाँ कोट-पैंट, जूता-मोज़ा,
कमीज़-नेकटाई,
क्रीम-पाउडर-यूडिकोलोन, रूमाल, ब्रीफ़केस !
छाता-मोटरकार-अख़बार,
चश्मे पर चढ़ी भँवें, गब्बर चेहरा,
दफ़्तर का कमरा, बड़ी-सी मेज़
फ़ाइलों का अम्बार,
बाहर चपरासी, भीतर घंटी,
’साहब व्यस्त हैं’ की तख़्ती...

ओहो, ज़ेनोफ़ोरा साहब !
मुबारक हो आपको अमरौती ।