मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' / पृष्ठ - २६
मुख मन अन्तर श्वाँस श्वाँस सब सच्चामय कर दे मधुकर
सच्चा प्रेम सार जग में कुछ और न सार कहीं निर्झर
जागृति स्वप्न शयन में तेरे बजे अखण्ड वेणु उसकी
टेर रहा अनवरतगुंजिता मुरली तेरा मुरलीधर।।126।।
जो कर रहा प्राणधन तेरा भला कर रहा है मधुकर
क्या उलाहना कैसा संशय यह कैसा विषाद निर्झर
श्रद्धा में संदेह न रख बस कह दे तू ही कर जो कर
टेर रहा है अर्पितान्तरा मुरली तेरा मुरलीधर।।127।।
चाह रहा सुख मिलता है दुख ही दुख क्यों तुमको मधुकर
संशय सर्प ग्रसित क्षण क्षण कंपित मन तू रहता निर्झर
लक्ष्य बेध से चूक संशयी दुखी रहेगा ही निश्चय
टेर रहा लक्ष्यवेधिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।128।।
शोभामय अति अज्ञान क्यों कि है क्षमावान मोहन मधुकर
गिरा तोतली भली क्योंकि है स्नेहमयी जननी निर्झर
सृष्टि परमप्रिय क्योंकि मधुर सच्चास्वरूपिणी रम्य सदा
टेर रहा सर्वांगसुन्दरी मुरली तेरा मुरलीधर।।129।।
चाहे जैसी भी जीवन में प्राप्त परिस्थिति हो मधुकर
उसको भाग्य बना लेने की कला सीखता चल निर्झर
सच्चा से नाता हो तो घर आ जाते सौभाग्य सकल
टेर रहा है भाग्यविधात्री मुरली तेरा मुरलीधर।।130।।