मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' / पृष्ठ - ३५
अपने ही लय में तेरा लय मिला मिला गाता मधुकर
अक्षत जागृति कवच पिन्हा कर गुरु अभियान चयन निर्झर
तुमको निज अनन्त वैभव की सर्वस्वामिनी बना बना
टेर रहा है भूतिभूषणा मुरली तेरा मुरलीधर।।171।।
दृग खुलते झलकता पलक झंपते ही आ जाता मधुकर
बुला लिया है तो न लौटकर फिर जाने देता निर्झर
कभीं न कुम्हिलाने वाली अपनी वरमाला पहनाकर
टेर रहा है रहसरंगिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।172।।
सुख दुख पाप पुण्य दिन रजनी मरण अमरता में मधुकर
ऊर्ध्व अधः सुर असुर जीव जगदीश्वर में न बॅंधा निर्झर
निगम ‘‘रसोवैसः आनन्दोवैसः’’ कह करते गायन
टेर रहा है श्रुत्यर्थमण्डिता मुरली तेरा मुरलीधर।।173।।
श्वेत केश मुख दशन रहित कटि झुकी जरा जरजर मधुकर
रस विरहित शोणित वाहिनियाँ झूली श्लथ काया निर्झर
देखो जीवन छाया पट पर उसका यह भी चित्रांकन
टेर रहा है रचनाविशारदा मुरली तेरा मुरलीधर।।174।।
अश्रु मुखी अनमनी म्लान रहने न तुम्हें देगा मधुकर
अपने दिनमणि पर भरोस रख तू सरसिज कलिका निर्झर
तेरी पीड़ा का निदान है प्रियतम की अम्लान हॅंसी
टेर रहा है लोमहर्षिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।175।।