मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' / पृष्ठ - १
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विरम विषम संसृति सुषमा में मलिन न कर मानस मधुकर,
वहां स्रवित संतत रसगर्भी सच्चा श्री शोभा निर्झर !
सुन्दरता सरसता स्रोत बस कल्लोलिनी कुलानन्दी
टेर रहा वृन्दावनेश्वरी मुरली तेरा मुरलीधर !! 1 !!
वर्ण वर्ण खग कलरव स्वर में बोल रहा है वह मधुकर
विटप वृंत मरमर सरि कलकल बीच उसी का स्वर निर्झर
उर अंबर में बोध प्रभा का उगा वही दिनमान प्रखर
टेर रहा है विश्वानंदा मुरली तेरा मुरलीधर ।।2।।
संसृति सब सच्चे प्रियतम की उससे भाग नहीं मधुकर
उसमें जागृति का ही प्रेमी बन जा अनुरागी निर्झर
जो जग में जागरण सजाये वही मुकुन्द कृपा भाजन
टेर रहा संज्ञानसंधिनी मुरली तेरा मुरलीधर ।।3।।
जिस क्षण जग में हुए सर्वथा तुम असहाय अबल मधुकर
उस क्षण से ही क्षीर पिलाने लगती कृष्ण धेनु निर्झर
अपना किये न कुछ होना है सूत्रधार वह प्राणेश्वर
टेर रहा अबलावलंबिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।4।।
छोटी से छोटी भेंटें भी प्रिय की ही पुकार मधुकर
मुदित मग्न मन नाच बावरे पाया प्रिय दुलार निर्झर
कहां पात्रता थी तेरी यह तो उसकी ही महाकृपा
टेर रहा अप्रतिमकृपालुनि मुरली तेरा मुरलीधर।।5।।