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मुरली सुनत बाम काम-जुर लीन भई / देव

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मुरली सुनत बाम काम-जुर लीन भई
 
धाई धुर लीक सुनि बिधीँ बिधुरनि सौँ ।
पावस न दीसी यह पावस नदी सी फिरै
 
उमड़ी असँगत तरँगित उरनि सौँ ।
लाज काज सुख साज बँधन समाज नांघि
 
निकसीँ निसँक सकुचैँ नहिँ गुरनि सौँ ।
मीन ज्यों अधीनी गुन कीनी खैँच लीनी देव
 
बंसी वार बंसी डार बँसी के सुरनि सौँ ।
 
 
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।