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मुलायम हो गयीं दिल पर बिरह की साइतें कड़ियाँ / सौदा

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मुलायम हो गयीं दिल पर बिरह की साइतें कड़ियाँ
पहर कटने लगे उन बिन जिन्हों बिन काटती घड़ियाँ

गुथी निकले हैं लख़्ते-दिल से तारे-अश्क की लड़ियाँ
ये आँखें क्यों मिरे जी के गले का हार हो पड़ियाँ

हनोज़1 आईना गर्द इस ग़म से अपने मुँह को मलता है
ख़ुदा जाने कि क्या-क्या सूरतें इस ख़ाक में गड़ियाँ

गिरह लाखों ही ग़ुंचों की सबा इक दम में खोले है
न सुलझीं तुझसे ऐ आहे-सेहर2 इस दिल की गुलझड़ियाँ

खुलाए गो की शाने से तुम अपने ज़ुल्फ़ के उक़्दे3
न समझे ये किसी दिल में हज़ारों हैं गिरह पड़ियाँ

तसल्ली इस दीवाने की न हो झोली के पथरों4 से
अगर 'सौदा' को छेड़ा है तो लड़कों, मोल लो फड़ियाँ

शब्दार्थ:
1. अभी तक, 2. सुबह की आह, 3. गिरहें, 4. पत्थरों