भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुल्क को चौहियों से वह दिलाएगा निज़ात / विनय कुमार
Kavita Kosh से
मुल्क को चौहियों से वह दिलाएगा निज़ात।
सौंप दोगे तुम जिसे कमज़ोरियों के कागजात।
यह युधिष्ठिर हार जाएगा हमारे सब क़िले
बिछ गया है देखकर बिछती हुई ग्लोबल बिसात।
ढूँढ़ते हैं आप बादल को गवाही के लिए
वह बरस कर धो गया होगा सबूते वारदात।
देवदारो, आग तो है पर चिनारों की नहीं
फूल जैसी आग से जलता नहीं बाग़े निषात।
सोच में मड़रा रही है मौत प्यासी चील सी
ढूँढ़ती होगी ग़ज़ल की आँख में आबे हयात।
पोछते हैं चांद को गीली नज़र से रात भर
देखते हैं हम किसी की कनखियों में क़ायनात।