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मुश्क़िलों में दिल के भी रिश्ते पुराने हो गए / सलीम रज़ा रीवा

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मुश्क़िलों में दिल के भी रिश्ते पुराने हो गए
ग़ैर से क्या हो गिला अपने बेगाने हो गए

चंद दिन के फ़ासले के बाद हम जब भी मिल
यूँ लगा जैसे मिले हम को ज़माने हो गए

पतझड़ों के साथ मेरे दिन गुज़रते थे अभी
आप के आने से मेरे दिन सुहाने हो गए

मुस्कराहट उनकी कैसे भूल पाउँगा कभी
इक नज़र देखा जिन्हें औ हम दिवाने हो गए

आँख, में, शर्मों, हया, पवंदियाँ, रुश्वाइयां
उनके न आने के ये अच्छे बहाने हो गए

अब भी है रग रग में क़ायम प्यार की ख़ुश्बू "रज़ा
क्या हुआ जो ज़िस्म के कपड़े पुराने हो गए