मुसीबत के समय दिल सब्र के साये में रहता है / सिया सचदेव
मुसीबत के समय दिल सब्र के साये में रहता है
घने बादल का सीना चीर के सूरज निकलता है
कोई उम्मीद बंधती है तो बंध कर टूट जाती है
नतीजा फिर वहीं तन्हाइयों में दिन गुज़रता है
हमें खुद मंज़िल ए मक़सूद तक लाती है हर मुश्किल
के हर रस्ता हमारे पावँ छू कर साथ चलता है
मेरा ये दिल मेरी धड़कन मेरी साँसें मेरा जीवन
तुम्हारे नाम का ये विर्द सुब्ह ओ शाम करता है
कभी चाहत कभी नफरत कभी गुस्सा कभी राहत
मिज़ाज ए यार तो तेवर नए हर दिन बदलता है
वहीं गलिया वहीं कूचे वहीं गुड़िया वही झूले
जो बचपन याद आ जाए तो दिल अब भी मचलता है
ये तितली फूल जुगनू और ये गाता हुआ दरिया
जहाँ में जो भी चलता है तेरी मर्ज़ी से चलता है
किसी का कोई भी अपना नहीं है ये भी सच है पर
सिया मैं राम की हूँ राम मेरे साथ रहता है