मुस्कराते हुए चेहरे हसीन लगते हैं
वरना इन्सान भी जैसे मशीन लगते हैं
दूसरों की खुशी, ग़म में शरीक जो होते
वही क़ाबिल, वही मुझको ज़हीन लगते हैं
जो हवाओं का साथ पा के फिर निकल जाते
ऐसे बादल भी मुझे अर्थहीन लगते हैं
उनसे उम्मीद थी लोगों के काम आयेंगे
पर, वो अपने ग़ुरूर के अधीन लगते हैं
धूल में खेलते बच्चे को उठाकर देखेा
अपने बच्चे तो सभी को हसीन लगते हैं
हुस्न की बात नहीं, बात है भरोसे की
फूल से ख़ार कहीं बेहतरीन लगते हैं