भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुस्कान लाना चाहता हूँ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
1
रोज़ जीने की हिम्मत जुटाता हूँ।
खड़ा होते ही फिर चोट खाता हूँ।
2
हज़ार बार मारते वे तो मुझको
आप हैं कि मुझे मरने नहीं देते।
3
तुम्हारे अधरों पर मैं
मुस्कान लाना चाहता हूँ
मैं इस दुनिया में
बार-बार आना चाहता हूँ।
4
जिसके पथ में फूल खिलाए
उसने ही घर रोज़ जलाए।
हम क्या करते छाले धोते
घोर अँधेरों में छुप रोते ।
जिसको समझा ये मेरे हैं
विषबीज सदा वे ही बोते ।
5
माना मिलने की आस नहीं
फिर भी मन हुआ निरास नहीं ।
साँझ हुई मुझे गीत मिला
गीतों में मन का मीत मिले॥
कब मीत बसा आ साँसों में
हो सका मुझे आभास नहीं।