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मुस्कुराहट की छवि आईने में देख सकते हैं हम / पल्लवी मिश्रा

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मुस्कुराहट की छवि आईने में देख सकते हैं हम,
दर्द को दर्पण में झाँकना शायद कभी मुमकिन न हो।

चलेंगे गर सही राह पर मंजिल तो पा ही जाएँगे,
राह भटक कर मंज़िल पाना शायद कभी मुमकिन न हो।

रातों का अँधेरा मिट जाता है चिराग की रौशनी से,
चिराग तले अँधेरा मिटाना शायद कभी मुमकिन न हो।

सपनों को सच होते अक्सर देखा है हमने,
सच को सपना बनाना शायद कभी मुमकिन न हो।

गिरने का डर तो उनको है आसमाँ पे बैठे हैं जो,
ज़मीन वालों को गिराना शायद कभी मुमकिन न हो।

हम तो रुक जाते हैं अक्सर वक्त के इंतजार में,
वक्त की रफ्तार रोकना शायद कभी मुमकिन न हो।