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मुहब्बत के बिना भी ज़िन्दगी क्या / ब्रह्मजीत गौतम

मुहब्बत के बिना भी ज़िन्दगी क्या
दुखों के गाँव में होगीख़ुशी क्या

उठाये जो नहीं गिरते हुओं को
भला वो आदमी भी आदमी क्या

अँधेरों में गुज़ारी उम्र जिसने
वो देगा दूसरों को रोशनी क्या

नहीं समझे जो उल्फ़त के इशारे
कि ऐसी सादगी भी सादगी क्या

बहारें आ गयीं हैं ज़िन्दगी में
हुई है आप से भी दोस्ती क्या

जो मंज़िल की तरफ़ बढ़ता अकेला
रहे उसको दुआओं की कमी क्या

लिया है ‘जीत’ जिसने नफ़रतों को
करेगा उससे कोई दुश्मनी क्या