भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुहाने पर नदी और समुद्र-8 / अष्‍टभुजा शुक्‍ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नदी के
किनारे-किनारे
बहुत से आश्रम थे
बगुला-भगतों के

करार तोड़कर
कभी-कभी स्वयं घुस जाती थी नदी
पर्ण-कुटियों में
तथाकथित मुनियों के
चरण-परस को अधीर
बहुत से तपलीन ऋषि
डूब गए सदेह
नदी के उफान में
जिनके नाम से
नहीं चल सका कोई गोत्र

मृगाक्षी नदी
दृष्टि डालती हुई चलती थी
दृश्यों पर
जबकि प्रतीक्षारत समुद्र
एकटक निहारता रहता था
नदी का रास्ता

समुद्र के
तन में
मन में
बसी थी नदी

नदी के
तन में
मन में
कहीं नहीं था समुद्र
मुहाने के अलावा