भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुहावरे / बैर्तोल्त ब्रेष्त / विजेन्द्र
Kavita Kosh से
1.
जब मै आवारा भटकता था
कुछ भी खास नहीं था मेरे पास
पता नहीं कहाँ मेरा
टोप पड़ा था
पता नहीं
कहाँ पिछले सात महीने
2
मुझे भरोसा नहीं
तुम्हारी आँखों पर
तुम्हारे कानों पर भी
भरोसा नहीं
तुम जिसे अंन्धेरा कहते हो
वो शायद उजाला है
3
अनुभूति
जब में वापस लौटा
भूरे नहीं थे मेरे बाल
तब था मै ख़ूब मुक्त
पहाड़ों की यातनाएँ हमारे पीछे है
मैदानों की हमारे सामने
कमजोरियाँ
कमजोरियाँ
तुम्हारी कोई नहीं थीं
मेरी थी सिर्फ़ एक
मै प्यार करता था
आने वाले महान समय की रंगीन कहावत
वन उगेंगे फिर भी
किसान अन्न उपजाएँगे फिर भी
फिर भी शहर
रहेंगे मौजूद
आदमी साँस लेंगे फिर भी
लड़ाई का कारोबार
एक घाटी पाट दी गई है
एक खाई और बना दी गई है
अँग्रेज़ी से अनुवाद : विजेन्द्र