भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मूंगारत / कुंजन आचार्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिन दूणी-रात चौगुणी
बधती मूंगारत
अर घटतो हेत,
मन नैं घणो दुखावै है।
चौमासा रो पाणी
गळा सूं ऊंचो निकळ’र
आंख्या में घुसबा को
जतन कर रैयो है।
गरीब तो
गरीब ई रैयग्या
अमीर भळै अमीर होयग्या।
तनखा खूट जावै घड़ी’क में
सरीर में पेट लार बैवण रो कसूर
आदमी रो तो नीं है।
बधती मूंगारत
घटतो हेत
मिनख-जमारो
जीव घणो दुखावै है।