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मूक चेहरे / अनुपमा तिवाड़ी
Kavita Kosh से
हमारे आस-पास
जी रहे हैं
हजारों बच्चे
एक आपराधिक भाव लिए
अपने चेहरों पर
जब वे छोटे थे
हम उनके पथ प्रदर्शक थे
पता नहीं कब छूट गई
हमारे हाथ से उनकी अंगुली
खो गए वे भीड़ में कहीं
सालों बाद वे मिले हमें
ढाबों पर कप-प्लेट धोते
फुटपाथ पर बूट-पॉलिश करते
रेलवे प्लेटफॉर्म पर पड़े फटेहाल
और सुधारगृह में सुधरने के लिए
अपने चेहरे पर आपराधिक भाव लिए वे,
ज़मीन में गड़े जा रहे थे
उनकी आँखों में सवाल भी नहीं था
कि, वे यहाँ क्यों आ गए?
पर, ये सवाल हम सबके बीच है
कि वे यहाँ कैसे पहुँच गए?