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मूठी / हरिऔध
Kavita Kosh से
वह भरी तो क्या जवाहिर से भरी।
जो नहीं हित-साधनाओं में सधी।
जब बँधी वह बाँधने ही के लिए।
तब अगर मूठी बँधी तो क्या बँधी।
लाल मुँह कर तोड़ दे कर दाँत को।
साधने में बैर के ही जब सधी।
जब खुले पंजा, बँधो मूका, बनी।
तब खुली क्या और क्या मूठी बँधी।