मूर्ख पंडित / सोहनलाल द्विवेदी
पंडित चार, पंडित चार,
इनकी सुनो कहानी यार!
सभी पढ़े थे वेद पुरान,
पर न जरा था उनको ज्ञान।
चारों थे पंडित विद्वान,
फिर भी थे पूरे नादान!
सबने मन में किया विचार,
चल विदेश में करें विहार।
घूमें चल कर देश तमाम,
पैदा करें दाम औ’ नाम।
साजे पोथी पत्रा साज,
चले सभी जंगल मंे आज।
देखा-मरा पड़ा था शेर,
पथ में था हड्डी का ढेर।
झटपट बोला पंडित एक,
अजी न बातें करो अनेक।
आओ अब अजमावें ज्ञान,
मरे शेर में लावें प्राण।
बहस और झंझट को छोड़,
दीं हड्डियाँ एक ने जोड़।
और एक ने मत्र उचार,
उसमें किया रक्त संचार।
करके यों ही अद्भुत तंत्र,
पढ़ने चला एक जब मंत्र।
बोला तब फिर पंडित एक,
करते क्या सोचो तो नेक।
ठीक नहीं करते यह काम,
होगा नहीं भला परिणाम।
काम कर रहे बिना विचार,
पढ़ लिखकर मत बनो गँवार।
मिली शेर को ज्यों ही जान,
लेगा तुरत तुम्हारे प्रान।
चलो नहीं ऐसी तुम चाल,
पैदा करो न अपना काल।
बात जरा सी लो यह मान,
उनमें बोला चतुर सुजान।
जब तक मैं चढ़ता हूँ पेड़,
तब तक रुको जहाँ है मेंड़।
चढ़ा पेड़ पर जहाँ सुजान,
आगे बढ़े शेष विद्वान।
जहाँ शेर में डाली जान,
गरजा सिंह, उठा बलवान।
थर थर लगे काँपने पाँव,
पंडित भूले सारे दाँव।
थे तीनों पंडित लाचार,
मचा खूब ही हाहाकार।
पर, सुनता था कौन पुकार?
झपट शेर ने डाला मार!
जब भी करो कभी कुछ काम,
पहले ही सोचो परिणाम।