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मूल्य अब मैं दे चुका हूँ / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
मूल्य अब मैं दे चुका हूँ!
स्वप्न-थल का पा निमंत्रण,
प्यार का देकर अमर धन
वेदनाओं की तरी में स्थान अपना ले चुका हूँ!
मूल्य अब मैं दे चुका हूँ!
उठ पड़ा तूफान, देखो!
मैं नहीं हैरान, देखो!
एक झंझावात भीषण मैं हृदय में से चुका हूँ!
मूल्य अब मैं दे चुका हूँ!
क्यों विहँसता छोर देखूँ?
क्यों लहर का जोर देखूँ?
मैं भँवर के बीच में अब नाव अपनी खे चुका हूँ!
मूल्य अब मैं दे चुका हूँ!