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मृगवाला / शिवनारायण / अमरेन्द्र

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चहल-पहल, भीड़-भाड़
असकल्ली, सपना बीच
मृगबालाा झाड़-झाड़!

डोर-डोर कत्तेॅ केॅ
आसा में बान्ही केॅ
लहरी केॅ जाय छुपलै
डोरी से छान्ही केॅ
कत्तेॅ के सपना में
मोर बनी नाँचलै
बेकाबू प्यास गढ़ी
ठनका सन भागलै
दूर-दूर पथहारा
अटक-भटक डार-डार।

धनहै के हाथोॅ में
सौंसे जग खेलै छै
कंचन मृग-किंछा में
मर्यादा तोड़ै छै
अपनोॅ रोॅ अपनौती
नै जानौं की होलै
लाभ-हानि, जोड़-घटाव-रस्सी पर
रिश्ता रोॅ नट डोलै
जे कुछ भी होय रहलोॅ
के करतै चीड़-फाड़।

बाबू के जेबी पर
खर्चा रोॅ भारी भार
सैर-ऊर पिकनिक आ
डेटि।ग के अनबुझ मार
पच्छिम के जीवन में
अपना केॅ ढाललेॅ छै
सुक्खोॅ के हाही में
यौवन-सुख टाललेॅ छै
अगर-मगर, ऐंछ-बैंछ
चिल्लाबै ठाड़-ठाड़।