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मृत्युबोध / अवतार एनगिल

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झर गई
सुबह की अंजुरी से
गुनगुनी धूप

ढल चला
दोपहर की धूप में
कोमल इस्पात


रुक गई है फिर
धानी नदी की
बहती आवाज़
और टंग गई
आकाश के खेमे पर
एक कुतिया की चीख़ :