भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मृत्यु तो इक क्षण है रे / कुमार मुकुल
Kavita Kosh से
मृत्यु तो इक क्षण है रे
लंबा यह जीवन है रे ...तु रू रू रू तू
सुबह हुई चिडि़या बोली
सबने अपनी आंखें खोलीं
धूसर-पीला-लाल-गुलाल
फैली इत-उत रंगोली ...
मृत्यु तो इक क्षण है रे
लंबा यह जीवन है रे ...तु रू रू रू तू
जामुन-बेरी-नीम-निबौली
मीठी अमिया उभ-चुभ बोली
मंद पवन बदली की ताल
अग-जग भीगा हुई ठिठोली ...
मृत्यु तो इक क्षण है रे
लंबा यह जीवन है रे ...तु रू रू रू तू