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मृत कमरा / केशव
Kavita Kosh से
कमरा सुन्न पड़ा है
रीढ-अ की हड्डी टूट गई हो जैसे
खिड़कियाँ दरवाज़े भिंचे हैं
मैगनट से जुड़े लोहे की तरह
ऊपर छत लकड़ी की है
जिस पर चिपकी है एक
अधमरी छिपकली
मुँह में छटपटाती है जिसके
एक तितली
नीचे ठंडा काले सीमेंट का फर्श है
मरे हुए गिद्ध सा
डैने फैलाए
खामोश पड़ा है
धूल सना प्यानो
दीवारें पत्थरों की
जिन पर टँगे हैं स्तब्ध
फ्रेम में जड़े चित्र
फलांगते-फलांगते फ्रेम
पथरा गई है मुस्कान
जिनके होठों पर
स्थिर हो गया है
उड़ते-उड़ते एक पक्षी
दीवारों के बीचों-बीच
मरे हुए चमगादड़ सी लटकी है
दीवारघड़ी की सूईयाँ
और प्रकाश फैलते-फैलते
सिमटकर
अपने ही अन्दर ही अन्दर
धंसा गया है कहीं
पानी की अंधेरी तहों पर जैसे
धँसता हो कोई पोत