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मेघ छाए / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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मेघ छाए
स्निग्ध कन्धों पर
असंयत-से कुन्तल
बिखर आए ।
फुहार में भीगा
सोंधी माटी - सा
महका तन,
अँगड़ाई लिये
पोर- पोर में
खिले उपवन।
सतरंगी सपने
काजर की डोर पर
उतर आए ।
हौले से उतरी है
माथे पर
बावरी चांदनी,
मुस्कान बन
अधरों पर करती है
किलोल दामिनी।
सपनीली परीकथा
नयनों में
उभर आए।