मेघ मेरे !
मुझे घेरे !
नदी-तालों में उतरते
मछलियों-सी चाल करते
हर गली हर मोड़ को
मुश्किल बनाते
घुप अन्धेरे ।
खेत पर रकबा बँधा है
खुले मुँह की बात क्या है
बैठने को घर नहीं है
बाग़ में डालेंगे डेरे ।
साँस कुहरे में टँगी है
बाप-दादों की ज़मीं है
शाम का वादा किए थे
आ गए कैसे सबेरे ।