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मेघ श्वेत-श्याम कह रहे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

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मेघ श्वेत-श्याम कह रहे
आसमाँ अधेड़ हो गया

कोशिशें हजार कीं मगर
रेत पर बरस नहीं सका
जब चली जिधर चली हवा
मेघ साथ ले गई सदा

बारहा यही हुआ मगर
इन्द्र ने कभी न की दया

सागरों का दोष कुछ नहीं
वायु है ग़ुलाम सूर्य की
स्वप्न ही रही समानता
उम्र बीतती चली गई

एक ही बचा है रास्ता
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