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मेरा आधार खम्भ / केदारनाथ अग्रवाल

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मेरा आधार खंभ
जमीन में गड़ा है
सिर उठाए
ऊपर, खड़ा है

मेरे हाथ
उसके अस्तित्व से निकले
दिशाओं में काम कर रहे हैं
इस समय
यथार्थ की गाँठ खोल रहे हैं

मैं हूँ
नवीन के निर्माण में लीन
जमीन मेरी है
आकाश मेरा है
मेरा आधार खंभ
मेरा, पुरुष है

रचनाकाल: १४-०९-१९६५