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मेरा काम / सुभाष मुखोपाध्याय

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मैं चाहता हूँ
अपने पैरों खड़े हो सकें शब्द
अपनी निगाहें हो हर परछाई की
हर ठहरा हुआ चित्र
अपने पैरों चल सके,
एक कवि की तरह याद किया जाऊँ
मैं नहीं चाहता,
चाहता हूँ --
कंधे से कंधा मिलाकर
जीवन के अंतिम दिन तक
साथ चल सकूँ,
चाहता हूँ --
ट्रैक्टर के पास
अपनी क़लम रख कर कह सकूँ
कि अब छुट्टी हुई!
भाई, मुझे थोड़ी-सी आग दो।


मूल बंगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी