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मेरा घर-आँगन / भारतेन्दु मिश्र
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पूर्वमुखी मेरा घर-आँगन भीज रहा है
पच्छिम से कुछ ऐसे बादल आए हैं ।
इनमें पानी नहीं
सिर्फ तेज़ाब भरा है
रूप-रंग ये कैसा जीवन में उतरा है
आज कँटीले झाड़ यहाँ अँकुराए हैं ।
पीली होकर घास
यहाँ हरियाती है
बीमारों की संख्या बढ़ती जाती है
थोथे गर्जन और धुएँ के साए हैं ।
अब तो सभी
हवा में बातें करते हैं
व्याकुल हुए किसान
भूख से मरते हैं
मोबाइल वो लिए हुए मुँह बाए हैं ।