भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरा जलना / कुँवर दिनेश
Kavita Kosh से
मैं
जलता हूँ
निरन्तर
एक मोमबत्ती की तरह
किन्तु
मैं
राख नहीं छोड़ता
मैं
छोड़ता हूँ मोम
पुनर्पुन: जलने के लिए...